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ईकौमर्स कंपनियों में खलबली औफर्स और कैशबैक अब नहीं..!

बदलते जमाने में ई-कॉमर्स की रूपरेखा बदल रही है। बदलाव से कोई खुश होगा तो कोई दुखी।ऐसा हर बदलाव से होता भी है। जमाना बदला है तो जमाने संग लोगों की सोच भी बदली। तौरतरीके, रंगढंग भी बदले। इसी बदली सोच का परिणाम है आॅनलाइन शौपिंग। ई-कॉमर्स या ई-व्यवसाय इंटरनेट के जरिए व्यापार का संचालन है। न केवल खरीदना व बेचना, बल्कि ग्राहकों के लिए सेवाएं और व्यापार के भागीदारों के साथ सहयोग भी इस में शामिल है।

लेकिन ये समर्थक क्या यह बता रहे हैं कि अमेरिकी कंपनियां आखिर क्यों अरबों रुपया लगा कर भारत में आना चाहती हैं। वे न उत्पादन तकनीक ला रही हैं, न व्यापार करने का सही तरीका बता रही हैं। वे तो भारत के व्यापार क्षेत्र में लंबे समय तक राज करने की मंशा के चलते भारतवासियों को हैवी डिस्काउंट, औफर्स और कैशबैक का लौलीपौप देने के साथ यहां के खुदरा कारोबारियों की कमर तोड़ रही हैं। इस के लिए वे टंपरेरी तौर पर रिस्क जरूर ले रही हैं।

पहले लोग बाजार जाते थे, चीजें देखते परखते थे, मोलभाव करते थे। उस के बाद पसंद आने पर खरीदते थे। मगर अब दुनिया बदल गई है। मोबाइल हाथ में क्या आया, हर आदमी यही समझता है कि मोबाइल हाथ में, तो दुनिया मुट्ठी में। पहले कुछ भी खरीदना हो, बाजार की सैर करनी ही पड़ती थी। कंप्यूटर और मोबाइल आने के बाद दुनिया बदल गई है। अब बाजार खुद उठ कर घर चला आता है। बिलकुल, जो मांगोगे वही मिलेगा वाला आलम है। इस को कहते हैं आॅनलाइन शॉपिंग। इस से खरीदारों के मजे हैं, मगर आॅफलाइन दुकानदारों की नींद हराम है। यदि ग्राहक घर बैठे खरीदारी करेंगे, मोटा डिस्काउंट पाएंगे और कैशबैक भी तो बाजार में दुकान खोल कर बैठे व्यापारी की तो शामत आनी ही है। यही हो रहा है। हर ग्राहक कहता है कि आॅनलाइन का जमाना है। क्यों न कहे? पहले बहुत मोलभाव करने पर व्यापारी थोड़ा सा डिस्काउंट देता था, अब आॅनलाइन कंपनियां बिना मांगे ही मोटा डिस्काउंट देती हैं। यदि कोई त्योहार वगैरह हो तो ये कंपनियां इतना डिस्काउंट दे देती हैं कि ग्राहक की आंखें चुंधिया सी जाती हैं। तब उसे वह कहावत याद आती है, आम के आम गुठलियों के दाम, वह भी घर बैठे। आॅनलाइन शॉपिंग का क्रेज आॅनलाइन शॉपिंग से ग्राहकों को जब संतुष्टि मिल रही हो तो शॉपिंग भला क्यों न फले फूलेगी। 21वीं सदी के युवा मिलेनियम मानते हैं कि उन पर तो सनक सवार है आॅनलाइन शॉपिंग का। आॅनलाइन शॉपिंग करने वाले से पूछा जाए कि इस का सब से बड़ा फायदा क्या है, तो शायद हर आॅनलाइन शॉपिंग करने वाले उपभोक्ता का यही जवाब होगा कि इस का सब से बड़ा फायदा होता है। हैवी डिस्काउंट और कैशबैक। किसी फेस्टिवल सेल के दौरान तो यह सारी हदें पार कर देता है क्योंकि 80 प्रतिशत तक डिस्काउंट पर चीजें मिलने लगती हैं। यह अलग बात है कि छूट के तहत मिलता सामान पुराने स्टोक्स का क्लियरेंस माल है, जो सस्ते में नहीं बेचा गया तो एक्सपायर हो जाएगा। राशन सप्लायर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ग्रोफर्स, बिग बास्केट इसी मॉडल पर काम कर रहे हैं। इन के उत्पाद सस्ते हैं मगर एक्सपायरी डेट नजदीक होती है। लूट की छूट का असली खेल लोग नहीं समझ रहे हैं। मगर आॅनलाइन शॉपिंग के दीवानों के लिए बुरी खबर यह है कि सरकार ने ऐसे नियम बनाए हैं जो आॅनलाइन शॉपिंग के फायदे काफी कम कर देंगे। मोटा डिस्काउंट मिलना इतिहास की बात बन जाएगी। सरकार ने ई-कॉमर्स सेक्टर के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में बदलाव किए हैं। जिस के तहत निश्चित कीमत से बहुत ज्यादा डिस्काउंट देने की पॉलिसी खत्म हो जाएगी। डिस्काउंट और कैशबैक इतिहास की बात हो जाएगी। ये नियम पहली फरवरी से लागू होंगे। देश के 2 सब से बड़े आॅनलाइन मार्केट प्लेस, एमेजोन और वौलमार्ट के स्वामित्व वाली फ्लिपकार्ट को नए नियमों के तहत रेगुलेट किया जाएगा। जाहिर है इस से इन के सदस्य उपभोक्ता पर चोट होगी, व्यापार में ग्राहक भगवान होता है। मोदी सरकार उसी को नाराज कर रही है। आखिर, उसे खुदरा और औफलाइन व्यापारियों के वोट जो चाहिए। आॅनलाइन शॉपिंग का मोटा डिस्काउंट उन का व्यापार चौपट कर रहा है। एमेजौन व μिलपकार्ट की मंशा आॅनलाइन शॉपिंग में हैवी छूट की हकीकत कुछ और भी है। यह भ्रम है कि एमेजौन और μिलपकार्ट कंपनियां सही दाम ले कर ही उपभोक्ता को लाभ पहुंचा रही हैं। असल में यह नुकसान अमेरिकी कंपनी भारतीय ग्राहकों को लुभाने के लिए उठा रही हैं, ताकि छोटे भारतीय व्यापारी हमेशा के लिए समाप्त हो जाएं। 2017-18 में मार्च 31 तक एमेजोन का नुकसान वर्ष में 6,287 करोड़ रुपए था जबकि बिक्री मात्र 4,928 करोड़ रुपए थी। लागत से ज्यादा नुकसान कौन व क्यों सहेगा? इसलिए कि वे भारत के खुदरा व्यापार पर कब्जा कर के पूरा बाजार समाप्त कर देना चाहती हैं। एमेजोन अब तक 25,090 करोड़ रुपए विदेशों से ला कर भारत में लगा चुकी है, जिस का अधिकांश हिस्सा उस ने ग्राहकों को छूट देने, डिलीवरी की सुविधा देने और विज्ञापन पर खर्च किया है। यह एक तरह से ऐसा ही है जैसे अमेरिका ने अपनी फौज इराक भेज कर उस देश को नष्ट कर दिया था। यह आक्रमण, दरअसल, व्यापारिक है। ई-कॉमर्स सेक्टर में एफडीआई के नए नियमों से फिलहाल सब से बड़ा घाटा उपभोक्ताओं को होगा। आज के दौर में अगर एक फोन भी खरीदना है तो रिटेल स्टोर्स पर कीमत की जानकारी लेने के बाद आॅनलाइन शॉपिंग की जाती है, ताकि हम छूट के साथ सस्ता सामान पा सकें। लेकिन अगर यह छूट बंद हो गई तो आॅनलाइन शॉपिंग का कोई फायदा ही नहीं रह जाएगा। चाहे होटल बुक करवाना हो, घर पर किराना सामान मंगवाना हो, किसी को फिल्म का टिकट बुक करवाना हो हर काम के लिए आॅनलाइन ऐप्स का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर नए नियम लागू हो गए तो उपभोक्ताओं को कितना नुकसान होगा। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि खुदरा बाजार में केवल एमेजौन और फ्लिपकार्ट अमेरिकी पैसे के बलबूते पर बचीं तो आज नहीं तो कल वे इस की वसूली महंगा सामान बेच कर करेंगी ही। जब छोटे व्यापारी खत्म हो जाएंगे तो ये दोनों कंपनियां छूट देना बंद कर देंगी। इतिहास का दोहराव चीन में 2 सदी पहले जब अफीम का व्यापार शुरू किया गया था तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने वहां सस्ती अफीम बेची, क्योंकि अंगरेजों की कंपनी ने भारत के व्यापार पर पूरा कब्जा कर लिया था। जब अफीम की वजह से चीन की कानून व्यवस्था चरमराने लगी तो अंगरेजों ने जबरन पानी के लड़ाकू जहाज भेज कर वहां के सम्राट को मजबूर किया कि व्यापार होने दे। बाद में चीनी सेनाओं ने अंगरेजों का मुकाबला किया। आज अमेरिकी पूंजी से भारत के व्यापार और खुदरा बाजार पर हमला हो रहा है। यह चोट अभी छोटे व्यापारियों को लग रही है, पर जल्दी ही उत्पादकों को चूसा जाएगा। यदि एमेजौन और वौलमार्ट की कंपनी फ्लिपकार्ट किसी कंपनी का बौयकाट कर दें तो चारदिनों में उस का दिवाला निकल जाएगा। ईस्ट इंडिया कंपनी ने चीन में अफीम बेचने का नायाब तरीका अपनाया था। उस ने अफीम खुद तो उगाई नहीं, पर उगाने वालों पर हर तरह कंट्रोल कर लिया। परमिट ले कर अफीम उगाई जाती और सस्ते में ईस्ट इंडिया कंपनी खरीदती। फिर उसे ऐसे प्रोसैस करती जिस से कि चीन तक जाने में वह खराब न हो। चीन में कई गुना ज्यादा दामों में वह बेची जाती। अंगरेजों की कंपनी बिना कुछ बनाए ऐसे ही पैसा बना रही थी, जैसे अब एमेजोन और फ्लिपकार्ट बिना कुछ तैयार किए पैसा कमा रही हैं। न तो वे सामान की प्रोडक्शन वैल्यू कम करती हैं न कुछ उत्पादित करती हैं।

सरकार की तुगलकी नीतियां जब ई-कॉमर्स सैक्टर शुरू हुआ था तब सरकार इस के जरिए विदेशी पूंजी को आकर्षित करना चाहती थी। अब इस सेक्टर के फलनेफूलने से सरकार को खुदरा दुकानदारों को चिंता सताने लगी है जिन की संख्या करोड़ों में है। ऐसे में उसे नियम बदलने की घोषणा करनी पड़ी। अब इस क्षेत्र के पुराने खिलाड़ियों में खलबली मच गई है। बड़े उद्योगपतियों की हिमायती मोदी सरकार ने चूंकि विदेशी निवेश वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी फौरेन डाइरैक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) के नियमों में बदलाव किया है, इसलिए इस का असर देश में एमेजोन और फ्लिपकार्ट के कामकाज के तरीके पर पड़ेगा। उद्योगपति मुकेश अंबानी की आने वाली ई-कॉमर्स कंपनी पर इन नियमों का कोई असर नहीं होगा। बाजार पर एमेजौन और फ्लिपकार्ट का कब्जा है। लेकिन रिलायंस के इस क्षेत्र में उतरने के बाद अब लड़ाई दिलचस्प हो गई है। नए नियमों के चलते भारत में फौरेन फंडिंग प्राप्त करने वाली कंपनियों के लिए हालात अब बदलने वाले हैं। जिन कंपनियों ने विदेशी निवेशकों से फंडिंग प्राप्त की है उन्हें भारत में वेयरहाउस खोलने की इजाजत नहीं होगी। कंपनियां अपने सेलर्स के जरिए भी वेयरहाउस का संचालन नहीं कर पाएंगी। वेयरहाउस के नहीं होने का सीधा असर कंपनियों की सप्लाई चेन पर पड़ेगा। ऐसे में कंपनियों के लिए डिस्काउंट और भारी सेल लगाना मुश्किल हो जाएगा। सब से बड़ी डील भारत का ई-कॉमर्स बाजार मुख्यरूप से एमेजोन और फ्लिपकार्ट के बीच बंटा हुआ है। वॉलमार्ट ने हाल ही में ई-कॉमर्स की सब से बड़ी स्वदेशी कंपनी फ्लिपकार्ट में 77 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी जिसे देश की अब तक की सब से बड़ी ई-कॉमर्स डील कहा जा रहा है। 16 अरब डौलर की डील पर इठलाने के बाद फ्लिपकार्ट की मुश्किलें अब बढ़ेंगी। इस के बाद लगातार आशंका जताई जा रही थी कि वॉलमार्ट इस के जरिए भारतीय आॅनलाइन बाजार में अपने उत्पादों की हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश करेगी। लगभग यही स्थिति एमेजोन के साथ है जो इनहाउस उत्पादों की बिक्री करती है। ई- कॉमर्स मार्केटप्लेस के लिए संशोधित एफडीआई नीति में वैंडर्स से भेदभाव की गुंजाइश भी खत्म कर दी गई है। संशोधित नीति में कहा गया है कि जिन रिटेल कंपनियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी ई- कॉमर्स मार्केटप्लेस की हिस्सेदारी है या जिन वेंडर्स पर उन का नियंत्रण है, उन्हें सभी वैंडर्स से गैर भेदभावपूर्ण तथा तटस्थता के साथ सेवा प्रदान करनी होगी। यह प्रावधान बहुत अजीब है, क्योंकि कोई व्यापारी अपना माल न बेचे, यह कहां का न्याय है। फिलहाल, कई ब्रैंड्स ऐसे हैं जो अपने उत्पाद सिर्फ आॅनलाइन ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए ही उपलब्ध कराते हैं। नए नियमों के तहत अब कोई भी वैंडर 25 फीसदी से ज्यादा इन्वैंटरी एक ही मार्केटप्लेस में नहीं रख सकेगा। यह नियम इसलिए है कि एमेजौन या μिलपकार्ट किसी कंपनी को बंधक न बना सके। सिर्फ हमारे पास अब नहीं ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए यह प्रोडक्ट सिर्फ हमारे पास जैसे लुभावने स्लोगन के दिन अब लद गए हैं। आम चुनाव से पहले खुदरा व्यापारियों को रिझाने के लिए सरकार ई-कॉमर्स कंपनियों पर नकेल कसने में जुट गई है। इसी के तहत सरकार ने आॅनलाइन मार्केटप्लेस मुहैया कराने वाली फ्लिपकार्ट, एमेजोन या इस तरह की दूसरी सभी कंपनियों को किसी भी प्रोडक्ट की एक्सक्लूसिव बिक्री संबंधी करार करने से रोक दिया है। ये सभी पाबंदियां पहली फरवरी से लागू होंगी। ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) संबंधी नियमों को संशोधित करते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने यह कदम उठाया है। नए नियमों के तहत किसी आॅनलाइन रिटेलर की गु्रप कंपनी को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कीमतों को प्रभावित करने की अनुमति नहीं मिलेगी। इस कदम से ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा भारीभरकम डिस्काउंट का औफर देने पर रोक लग जाएगी। इस से खुदरा दुकानदारों को राहत मिलने की उम्मीद है। ये व्यापारी लंबे समय से ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा दिए जा रहे भारी डिस्काउंट पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। वर्ष 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी ने विदेशी कंपनियों के खुदरा बाजार में आने से रोक लगाने और घरेलू छोटे कारोबारियों के संरक्षण का वादा किया था। देश में खुदरा बाजार बहुत बड़ा है। एक अनुमान के मुताबिक, देश में लगभग 4 करोड़ खुदरा दुकानें हैं। इन के माध्यम से लगभग 14 करोड़ लोगों की रोजीरोटी जुड़ी हुई है। जीएसटी के कारण पहले ही सरकार से नाराज चल रहे व्यापारी आॅनलाइन कंपनियों पर कोई लगाम न लगाए जाने से भी नाराज चल रहे थे। सरकार ने जीएसटी की दर घटा कर व्यापारियों को मनाने का काम किया था पर वह काफी नहीं है, क्योंकि ज्यादातर बहुत महंगी चीजों पर ही जीएसटी की दर कम की गई है। चुनावी हार का असर भी यह सच है कि दिसंबर 2018 में आए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों में हार मिलने से भाजपा आम चुनावों को ले कर डर गई। मजबूर हो कर वह ई-कॉमर्स के नियमों में बदलाव ला रही है। आने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए सरकार को नीतियां बदलने को मजबूर होना पड़ा, क्योंकि इन खुदरा व्यापारियों की संख्या करोड़ों में है और वे भाजपा का जनाधार रहे हैं। जबकि, मोदी और अरुण जेटली इन्हें कालाबाजारिए मानते हैं जिन से वसूलने का मौलिक हक हर पंडा सरकार को है। लेकिन यह चोर के घर चोरी करने वाली नीति है। इस से जनता को दूरगामी नुकसान नहीं होंगे। आॅनलाइन बाजार के कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार द्वारा तैयार की जा रही नई ई-कॉमर्स नीति खुदरा व्यापारियों को लुभाने में नाकाम रह सकती है। इस कदम के बावजूद सरकार को आगामी आम चुनावों में छोटे कारोबारियों का वोट पाने की उम्मीदों को झटका लग सकता है। चुनाव के कुछ समय पहले किए गए बदलाव मतदाताओं तक पहुंच नहीं सकते, इसलिए उन का लाभ सत्ताधारी पार्टी को नहीं मिल पाता। प्राइस वाटरहाउस कूपर की सितंबर की रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया गया है कि आॅनलाइन कौमर्स अगले 5 वर्ष 25 प्रतिशत की दर से बढेगा और 2022 तक 100 अरब डौलर तक पहुंच जाएगा। निवेश विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार जो अंकुश लगाने जा रही है उस से विकास की इन संभावनाओं को नुकसान पहुंचेगा। वजीर एडविजर के रिटेल कंसल्टैंट हरमिंदर सहानी के मुताबिक, नई ई-कॉमर्स नीति कहती है कि आॅनलाइन रिटेल व्यापार को भारतीयों को ही चलाना चाहिए। ?

ग्राहकों को झटका छोटे व्यापारियों के दबाव में जो परिवर्तन होने वाला है, उस से औनलाइन शॉपिंग करने वालों को झटका लग सकता है। अब एमेजौन, फ्लिपकार्ट, पेटीएम मौलऔर स्नैपडील जैसी वैबसाइट्स के डिस्काउंट पर नजर रखने के लिए नियम बन रहे हैं। सरकार ने हाल ही में ईकौमर्स क्षेत्र के लिए राष्ट्रीय नीति का मसौदा जारी किया है। इस में यह कहा गया है कि इस तरह की छूट की सीमा होनी चाहिए। इस में स्विगी, अर्बन क्लैप, पेटीएम और पौलिसी बाजार जैसी वैबसाइट्स को भी शामिल किया जाएगा। मसौदे में ईकौमर्स सैक्टर के लिए एक रैगुलेटर बनाने का भी प्रस्ताव है। यह रैगुलेटर ईकौमर्स कंपनियों के कारोबार पर नजर रखेगा। भारत में ईकौमर्स कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। भारत के बाजार पर कब्जे के लिए फ्लिपकार्ट (वौलमार्ट), एमेजौन और रिलायंस रिटेल में मार्केट वार हो रही है। कहा जा रहा है कि ऐसे में इस सैक्टर के लिए नियम बहुत जरूरी हैं।

सतीश पेडणेकर